Posted on Trivia- The Spice of Life on 01/05/2022
कहते हैं – कर भला तो हो भला ; अर्थात् , अगर हम दूसरों का भला करेंगे तो हमारा भला अवश्य होगा। साथ ही ऐसी भी धारणा है कि ‘नेकी कर दरिया में डाल‘ ; यानी कोई भी अच्छा काम करो जिससे किसी और की मदद हो, परन्तु उसका डंका मत पीटो। यही हमारे बड़ों ने हमें सिखाया हैं। और हम अपने बच्चों को यही पाठ पढ़ाते हैं, क्योंकि अच्छे कर्म करने से परिणाम भी अच्छे प्राप्त होते हैं। इसके बावजूद क्या आपने यह महसूस नहीं किया है कि जो व्यक्ति सीधी राह पर चलता है और सादगी से अपना जीवन व्यतीत करता है, उसे ही सबसे अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है ? कई बार यह समझ ही नहीं आता कि किसी निष्पाप व्यक्ति का समय से पहले निधन क्यों हो जाता है या फिर वह किसी लाइलाज बीमारी का शिकार क्यों हो जाता है ? जब ऐसी बातों पर चर्चा होती है तो इनका ये कहकर निदान कर दिया जाता है कि वे तो उन बुरे कर्मों का फल भुगत रहे हैं जो पिछले जनम में किये होंगे। कर्म का सिद्धांत मानो वह ब्रह्मास्त्र है जिसका कोई तोड़ नहीं। उसके सामने सारे तर्क धराशायी हो जाते हैं।
आज हमारे आस-पड़ोस और समाज में न जाने कितने लोग हैं जो हर संभव कुकर्म करते हैं, पर उनका बाल भी बाँका नहीं होता। जेल से छूट रहे अपराधी नेताओं का स्वागत ऐसे किया जाता हैं मानो वे कोई स्वतंत्रता सेनानी हो। यह कर्म का सिद्धांत ही है जिससे हम ऐसे लोगों की ख़ुशहाली का कारण समझा पाते है। लेकिन कई बार यह मलाल होता है कि बुरे के साथ बुरा क्यों नहीं होता? अगर ऐसा न हुआ तो अच्छाई पर से विश्वास उठ जाएगा। सबके कर्मों का हिसाब तो भगवान् कर ही देते होंगे। पर अगर यह हिसाब हमारे जीवन काल में हमारे समक्ष ही हो जाता तो कितना अच्छा होता। जिसने बुरा किया है, जिसने अन्याय किया है, काश उसे हमारे रहते ही सज़ा मिल जाती तो हमें अपने बच्चों को यह सिखाने में – कि बुरे का अंत बुरा होता है – आसानी होती।
ऐसे में अंग्रेजी साहित्य में प्रयुक्त होने वाला एक वाक्यांश याद आता है – poetic justice (पोएटिक जस्टिस) यानी ‘आदर्श न्याय’; और शाब्दिक अनुवाद किया जाए तो ‘काव्यात्मक न्याय‘। अक्सर साहित्य में ऐसा परिणाम दर्शाया जाता है जिसमें दोषी को दंडित किया जाता है और निर्दोष को अजीब या विडंबनापूर्ण तरीक़े से पुरस्कृत किया जाता है । लेकिन मुश्किल ये है कि हक़ीक़त में ऐसा होते बहुत कम ही दिखता है। इसका मतलब ये नहीं कि हम अपने पथ से भटक जाएं। ऐसा सवाल ही पैदा नहीं होता। पर हाँ, उठते कदम ज़रूर कुछ बोझिल होंगे।
अनीता,
हिन्दी (देवनागरी) में एक गंभीर विषय पर लिखने के लिए आपको हार्दिक बधाई. इससे जुड़ा हुआ एक और तरह का न्याय आजकल काफ़ी चर्चा में है. ‘तत्काल न्याय’ (instant justice) सिद्धांत के तौर पर कितना दोषपूर्ण है और इसके क्या ख़तरे हैं हम सभी जानते हैं. लेकिन कुछ तरह के अपराधों पर जनमानस का समर्थन रहता है और प्रबुद्ध लोगों में भी यह भावना रहती है कि ठीक हुआ. इसमें भला क्या बुरा क्या का विभेद मिट जाता है.
AK
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लेख को पढ़ने और अपनी राय व्यक्त करने के लिए धन्यवाद, ए. के.जी । इंस्टेंट जस्टिस और मीडिया ट्रायल से आज हम बच नहीं सकते। हालांकि सभ्य समाज में ऐसी सोच के लिए जगह नहीं हो सकती है, पर अगर न्याय मिलते मिलते सदियाँ बीत जाए तो सब्र का बाँध टूटने लगता है और हम विचलित होने लगते है।
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Anita,
Nice post. And congratulations for writing in Hindi. Hindi typing, especially मात्राs pose a challenge.
Please go through your article. Several places है ं should be without the अनुस्वार. In some places, though very few, there is a reverse error. Second line first word यहीं should be यही.
AK
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Thanks, AKIji for pointing out the typing errors. As you have aptly pointed out, typing in Hindi is a little tedious. I have tried to rectify the mistakes.
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