बचपन की गुल्लक


Indeavour Mitti Ka Gullak Coin Bank Price in India - Buy Indeavour Mitti Ka  Gullak Coin Bank online at Flipkart.com
Image Courtesy : https://www.flipkart.com/

आज अनायास ही बचपन की वह गुल्लक याद आ गई जिसमें सालों पुरानी अनगिनत मासूम यादें अब भी महफ़ूज़ हैं I जिस तरह कहते हैं कि जो मज़ा इंतज़ार में है, वह दीदार-ए-यार में कहाँ , ठीक वैसे ही कोई भी चीज़ जब आपको बिना इंतज़ार किए मिल जाए तो उसकी क़ीमत का अंदाज़ा ही नहीं होता I आज फ्रिज खोला तो न जाने कितने सारे अलग किस्म के चॉकलेट नज़र आए I पर उन्हें खाकर वह मज़ा नहीं आया जो मुझे बचपन में हर महीने की पहली तारीख को आता था, जब पाप्पा तनख़्वाह मिलने की ख़ुशी में हम भाई बहनों के लिए कैडबरी के लॉलीपॉप लाते और हम उन्हें बड़े चाव से चूसते। पूरे महीने इस एक दिन का इंतज़ार रहता I

कई बार ऐसा लगता है कि अभाव में भी एक अलग आनंद होता है। अभाव से जुड़ी सरलता आज के चकाचौंध भरे जीवन में हम कहीं खो बैठे हैं। कोई तीस पैंतीस साल पहले हमारे पास इतने विकल्प ही नहीं हुआ करते थे। टी. वी. पर दूरदर्शन ही वह एकमात्र चैनल था जिसे हम देखते थे I विविध भारती ही वह अकेला चैनल था जिसे हम रेडियो पर सुनते थे I इंटरनेट ने दस्तक नहीं दी थी I दोस्तों को साल गिरह की मुबारकबाद फेसबुक अकाउंट देखकर नहीं दिया करते थे I हम अपने दोस्तों से वास्ता रखने वाले उन ख़ास दिनों को बाक़ायदा याद रखते थेI जन्मदिन भी घर पर ही सादगी से मनाया जाता था I कोई शोर-शराबा नहीं होता थाI फिर भी कितना उत्साहित रहते थे I घर आलीशान नहीं हुआ करते थे; फिर भी घर पर कितना सुकून मिलता था I

बचपन से ही मुझे पुराने हिंदी फ़िल्मी गीत सुनने का बड़ा शौक था I उन दिनों सिर्फ़ टेप रिकॉर्डर कैसेट हुआ करते थे I मुझे अब भी याद हैं कि किस तरह जब दो तीन महीनों के अख़बार इकट्ठे हो जाते थे, तब उन्हें बेचकर, उन पैसों से मैं अपनी मनपसंद फिल्मी गीतों के कैसेट ख़रीदा करती थी। कई बार मैं अपने मनपसंद गीतों को खाली कैसेट खरीदकर उन्हें रिकॉर्ड भी करवाती थी I आज उन बातों को याद करके मन बड़ा प्रसन्न हो रहा हैं; उन दिनों एक अलग ही जूनून सवार रहता था I आज की यूट्यूब वाली पीढ़ी को मेरी ये बातें बेवकूफ़ाना लगेंगी I

और गुल्लक सिर्फ़ यादों की ही नहीं; हमारे घर में एक मिट्टी की गुल्लक हमेशा ही हुआ करती थी I जब मेहमान या रिश्तेदार आते, तो हम बच्चों के हाथों में जाते जाते कुछ पैसे थमा देते I हम भाई बहनों ने आपस में यह तय किया था की इस तरह मिले हुए सारे पैसे उस मिट्टी की गुल्लक में डाले जाएंगे I उस गुल्लक को भरते देख बड़ी ख़ुशी होती थी I सारे चिल्लर पैसे भी उसीमें डाल दिए जाते I अगर घर खर्च के लिए पैसों की ज़रूरत होती, तो बिना किसी झिझक के उसे तोड़ दिया जाता; पर इसी शर्त पर कि एक नयी मिट्टी की गुल्लक तुरंत घर लाई जाएगी I साथ ही, मम्मी पप्पा की शादी की साल गिरह पर भी इसी गुल्लक को तोड़कर हम भाई बहन कोई छोटा सा तोहफा ख़रीदते थे I

Video Courtesy : YouTube (only for illustration)

नयी गुल्लक ख़रीद लाने की ज़िम्मेदारी मेरी ही होती थी I हमारे घर के पास ही एक कुम्हार था जो मिट्टी के बर्तन और दीये बनाया करता थाI वह मिट्टी के खिलौने और गुल्लक भी बनाता I जब भी गुल्लक खरीदने जाती, तब काफ़ी देर तक, मैं उसके हुनर को देखती रहती I कोई साधारण मिट्टी में कैसे इतनी आसानी से जान फूँक सकता था, यह सोचकर मुझे बड़ी हैरानी होती I

बचपन में मिट्टी के गुल्लक तो कई तोड़े हैं, पर यादों की इस गुल्लक को मैंने मन के किसी कोने में सहेजकर रखा है I कभी कभी बिना तोड़े ही उससे एकाधा याद निकाल लेती हूँ; उसपर जमी धूल को पोंछ देती हूँ और फिर से उसे उसी गुल्लक में बड़े ध्यान से वापस डाल देती हूँ । सच कहूँ तो यादों की यह गुल्लक ही जीवन की जमा पूँजी है !!

Leave a comment

Design a site like this with WordPress.com
Get started