(Posted on 29/08/2022 on Trivia- The Spice of Life)
[Many a slice of life post that I write, especially in Hindi, can be attributed to a school assignment of my daughters. This piece was written on the fly for an elocution that my daughter wanted to participate in. Since I had taken the effort to write this, I felt that it could be turned into a blog post as well. The topic was मास्क के पीछे की दुनिया का वर्णन or the world behind the mask. ]

कोरोना महामारी ने हमारे पहनावे को बदल-सा दिया है । हम सब को एक नया रूप दे दिया है।आप कहेंगे कि मुझे अपनी बात बिना लाग लपेट के केहनी चाहिए। तो चलिए, सीधे मुद्दे पर ही आ जाते है । क्या आपने अपनी अलमारी में मास्क के लिए अलग जगह नहीं बनाई है ? जब महामारी की शुरुआत हुई, तब हम सब इस मास्क को पहनने से कतराते थे । इसे अपने मुँह और नाक पर लगाने से घुटन-सी होती थी । पर धीरे-धीरे जैसे यह हमारी दुनिया का एक हिस्सा बन गया। अब तो सब मास्क के मुरीद हो गए हैं। यह है भी तो बड़े काम की चीज़। महामारी में इसने संजीवनी बूटी का काम किया और अब भी किसी न किसी तरह हमारी दुनिया पर राज कर ही रहा है।
अभी कल ही की बात लीजिए । पाप्पा ऑफिस के लिए तैयार होकर नाश्ता करने बैठे तो माँ ने उनकी ओर टेढ़ी नज़र से देखकर कहा, “अरे आपने शेव (shave) नहीं किया, चेहरा ठीक नहीं लग रहा है।” पाप्पा ने घड़ी की ओर देखा । पहले ही काफ़ी देर हो चुकी थी । मन ही मन माँ की पैनी नज़र को कोसते हुए कहा, “अरे मास्क है न, मेरा चेहरा कोई कैसे देखेगा ?” पाप्पा ने जैसे ही मास्क लगाया, चेहरे का पूरा नक़्शा ही बदल गया। तो ये है मास्क का कमाल, जो एक अलग ही look देता है ! मास्क के पीछे की हक़ीक़त पूरे दिन के लिए छिपी रहे, ऐसी दुआ माँगते हुए पाप्पा दफ़्तर के लिए निकले।
लीजिये सुनिए मास्क का एक और कमाल। करीब एक हफ़्ते पहले दीदी की नाक के नीचे एक बहुत बड़ी फुँसी आ गयी थी। आईने में अपना चेहरा देखकर वह ज़ोर से चीखी। उसके दफ़्तर में एक ज़रूरी मीटींग (बैठक) थी, जिसमें उसे एक presentation करना था । दीदी ही आकर्षण का केंद्र बनती। पर इस फुँसी ने तो सारा मज़ा ही किरकिरा कर दिया था। तब मैंने पीछे से कहा, “दीदी मास्क है न, पहन लो, फुँसी छिप जाएगी।” दीदी यह तरकीब सुनकर खुश हो गयी और मैचिंग मास्क ढूँढ़ने में लग गई ।
जाते-जाते आज ही का एक किस्सा सुनाती हूँ । मैं स्कूल के लिए तैयार हो ही रही थी कि मास्क ने फिर अपना जादू चलाया। दरस्सल, मुझे गणित की परीक्षा में अपेक्षा से काम अंक मिले थे। माँ से अभी तक यह बात बताई नहीं थी। मैंने सोचा क्यों न सारा दोष मास्क पर ही मढ़ दूँ? मैंने माँ से कहा, “इस बार मुझे गणित में कम अंक मिले है, पर दोष मेरा नहीं, मास्क का है। स्कूल में इसे हर वक़्त पहनकर रखना पड़ता है। गणित की परीक्षा के दौरान भी इसे पहना था। क्योंकि मैं चश्मा पहनती हूँ, साँस छोड़ने पर सारा भाप चश्मे पर आ गया और मुझे ठीक से दिखा ही नहीं ; ऐसे में मैं क्या लिखती ?” माँ समझ गयी कि मैं मनगढ़ंत कहानी सुना रही थी, पर स्कूल बस आने ही वाली थी।सो भगवान् की दया से बात वहीं रह गयी । मास्क ने फिर मुझे जीवन दान दिया । तो कहिये, मास्क के पीछे की मेरी दुनिया आपको कैसी लगी ?